बुंदेलखंड पृथक राज्य : प्रासंगिकता और सार्थकता

बुंदेलखंड पृथक राज्य : प्रासंगिकता और सार्थकता

सशक्त इतिहास, शौर्य गाथाओं और समृद्ध संस्कृति को संजोये बुंदेलखंड हमेशा से ही सुर्ख़ियों में रहा है। बात महाभारत काल की हो या फिर राजा-रजवाड़ों के समय की ! स्वतंत्रता समर में भी बुंदेलखंड आगे रहा है ।
आजादी के बाद से ही बुंदेलखंड उपेक्षा का शिकार रहा है । हाँ राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं के दोहन के काम तो बुंदेलखंड जरूर आया लेकिन यहाँ के वाशिंदों की मुफलिसी आज तक दूर नहीं हुई । उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश दो राज्यों में बँटे बुंदेलखंड का समय के मुताबिक़ विकास से कोई नाता नहीं है । ये बात अलग है कि लोक संस्कृति, विरासत और खनिज संपदाओं के मामले में बुंदेलखंड किसी से पीछे नहीं है ।
स्वतंत्रता के बाद से ही बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठती आ रही है। कई आंदोलन हुए और हो रहे हैं । पृथक बुंदेलखंड राज्य आंदोलन के प्रणेता व बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक स्व.शंकरलाल मेहरोत्रा “भैया” ने तो पूरा जीवन राज्य आंदोलन को समर्पित कर दिया । विट्ठल भाई पटेल,  फिल्म अभिनेता राजा बुंदेला और कई नामचीन लोगों को उन्होंने राज्य आंदोलन से जोड़ने का काम किया था।
ख़ास रिपोर्ट डॉट कॉम अपने सुधि पाठकों के लिए बुंदेलखंड अलग राज्य की प्रासंगिकता विषय पर एक श्रृंखला शुरू करने जा रहा है । जिसमें इतिहासकार, साहित्यकार , पत्रकार, राज्य आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ताओं और मूर्धन्य मनीषियों के विचार क्रमशः प्रस्तुत किये जायेंगे ।
                                            – संपादक 
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