- धर्मेन्द्र साहू
झांसी। उम्र 75 साल है लेकिन उनमें उत्साह और लगन एक युवा की तरह है। कला, संस्कृति, इतिहास व आधुनिक तकनीक में भी वे पारंगत हैं। यहां तक कि रसोईघर में दक्ष रसोईये की तरह पाक कला में भी निपुण हैं। बात हो रही है झांसी के प्रसिद्ध समाजसेवी एवं लोककलाविद मुकुंद मेहरोत्रा की।
झांसी के प्रतिष्ठित मेहरोत्रा परिवार के सुंदरलाल मेहरोत्रा के घर जन्में मुकुंद मेहरोत्रा बचपन से ही कुशाग्र बु़द्ध के धनी रहे हैं। इनके दादाजी मुन्नालाल मेहरोत्रा को आर्किटेक्चर का ज्ञान था। इसलिये इनका रूझान भी क्रियेटिव आर्ट की तरफ हो गया। जब ये 13 वर्ष के थे तब अपनी कक्षा में अपने टीचर्स को देखकर उनके स्केच व पोट्रेट बनाने लगे थे। धार्मिक संस्कारों के कारण मुकुंद मेहरोत्रा को बचपन से ही रामायण, गीता, वेद-पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन का मौका मिला, जिससे इनका मन सृजनात्मक वृत्ति की ओर बढ़ गया। प्रत्येक कार्य को ये एक अन्वेषक और वैज्ञानिक की तरह करते।
झांसी में पहला बिजली घर इनके दादाजी मुन्नालाल मेहरोत्रा ने शुरू किया जिसमें निजी रूप से 10 मेगावाट बिजली का उत्पादन उस वक्त होता था। शहर में मुन्नालाल पावर हाउस के नाम से ये बिजली घर अब सरकार द्वारा संचालित है। इसके अलावा नौगांव, हल्दवानी, गोरखपुर में भी इनके बिजलीघर संचालित थे। बचपन से ही इस तरह का माहौल देखकर इनका मन भी अन्वेषक की तरह हो गया। सेंट फा्रंसिस और क्राईस्ट द किंग स्कूल में प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब इनका एडमीशन राजकीय इंटर कॉलेज में हुआ। उस वक्त इनकी हिंदी अच्छी नहीं थी। जब हिन्दी के एक अध्यापक शास्त्री जी ने इन्हें बाल्मीकि रामायण पढ़ने को दी तो इनकी हिंदी तो अच्छी हो ही गई साथ ही संस्कृत भाषा का भी अच्छा ज्ञान हो गया। फिर इन्होंने संस्कृत भाषा के थियेटर शो हर बुधवार और शुक्रवार को जीआईसी में शुरू कर दिये। इनका ये रंगमंच कार्यक्रम सबने सराहा।
कॉलेज की खेलकूद प्रतियोगिताओं में भी ये बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते। क्रिकेट, बॉलीबॉल, बैडमिंटन और फुटबाल के साथ ही पारम्परिक खेलों में भी ये अब्बल रहे।
मुकुंद मेहरोत्रा ने बताया कि इस्कॉन के संस्थापक श्रील प्रभुपाद के सान्निध्य में ये दो महीने तक रहे। तब इनको सनातन धर्म के शास्त्रों का वैज्ञानिक महत्व पता चला। कॉलेज के सोशल वर्किंग टूर के दौरान इन्होंने खाना बनाना सीखा और नई-नई रेसीपीज बनाकर पाक कला में निपुणता हासिल कर ली । आज भी मुकुंद जी अपने घर के रसोईघर में स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं और लोगों को खिलाकर आत्मसंतुष्टि महसूस करते हैं।
चूंकि इन्हें बचपन से ही रंगमंच और कला से प्रेम था इसलिये इन्होंने झांसी में सिनेमा घर का निर्माण कराया। सन 1974 में इसका निर्माण शुरू हुआ और 5 अप्रैल 1979 में नन्दिनी सिनेमाघर का उदघाटन हुआ। नन्दिनी सिनेमा वास्तुशिल्प की अदभुत मिसाल है। बॉलवुड की अधिकांश सुपरहिट फिल्में नन्दिनी में ही प्रदर्शित होती थी। नन्दिनी सिनेमा की लोकप्रियता के चर्चे अब भी होते हैं।
मुकुंद मेहरोत्रा ने कला के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण और समाजसेवा के भी कई अनूठे कार्य किये। नागरिक सुरक्षा संगठन में 33 वर्ष उन्होंने दायित्व निभाया। जिसमें 31 वर्ष तक वे चीफ वार्डन के पद पर रहे। बुंदेलखंड की पारम्परिक लोक संस्कृति को बढ़ाबा देने के लिये उन्होंने झांसी महोत्सव की परिकल्पना की और 1993 में पहला झांसी महोत्सव शासन द्वारा शुरू हुआ। इन्होंने पुलिंद कला दीर्घा का भी गठन किया ताकि बुंदेली कलाकारों को एक मंच मिले। मुकुंद जी बताते हैं कि बुंदेलखंड के पारम्परिक लोक उत्सव इतने समृद्ध हैं कि उनसे आज भी जीवन जीने की कला मिलती है। झिंझिया, सुआटा व मामुलिया जैसे लोक उत्सव लड़कियों में आत्मविश्वास बढ़ाते और कला के प्रति रूचि पैदा करते हैं। बुंदेलखंड के तीज त्योहार, लोक गायन और परम्पराऐं आज भी जीवन में नया उत्साह पैदा करते है।
75 वर्ष की उम्र में भी मुकुंद मेहरोत्रा एक नवयुवक की तरह लोककला और समाजसेवा के कार्यों के लिये हमेशा सक्रिय रहते हैं। ऐतिहासिक स्थलों के संरक्षण ,लोक परम्पराओं व कला-संस्कृति के कार्यों में सबसे पहला नाम उनका ही आता है।
यू.पी. साईंस सेण्टर, उदयपुर भारतीय लोककला मंडल, लायन्स क्लब, अंतर्राष्ट्रीय विधिक सेवा संस्थान व झांसी महोत्सव आयोजन समिति जैसी संस्थाओं में अब भी सक्रिय रूप से भागीदार निभा रहे हैं। बहुआयामी प्रतिभा के धनी मुकुंद मेहरोत्रा समय के साथ अपडेट रहते हैं। मोबाईल फोन, कम्प्यूटर आदि की तकनीकी जानकारी उन्हें किसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर से कम नहीं होती। मुकुंद जी घरेलू उपचार विधि से जटिल रोगों के उपचार की जानकारी भी रखते हैं। जिनसे लोगों का लाभ होता है।
वे कहते हैं कि गति ही जीवन है। इसलिये किसी भी क्षेत्र में सतत सक्रियता सफलता प्रदान करती है। जिस भी क्षेत्र में आगे बढ़ना है उसमें तन्मयता से जुट पड़ो।