( धर्मेन्द्र साहू )
बुंदेलखंड में पत्रकारिता की बात करें तो वरिष्ठ पत्रकार गिरीश सक्सेना का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। सन 1967 से पत्रकारिता शुरू करने वाले गिरीश सक्सेना अपनी हुंकार और धारदार लेखन के लिये जाने जाते हैं। दैनिक भास्कर जैसे ख्याति प्राप्त समाचार पत्र से इन्होने अपने कैरियर की शुरुआत की। इसके बाद दैनिक आज में बुंदेलखंड प्रभारी के रूप में वर्षों अपनी सेवाऐं दी। अक्षर भारत, समाचार सिला और राष्ट्रीय दैनिक ‘स्वदेश’ के लिये इन्होने लम्बे समय पत्रकारिता की। राजनीति में इनका जनसंघ से नाता रहा । 1975 में आपातकाल के दौरान ये 13 महींने तक झांसी जेल में बंद रहे । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के साथ इन्होने 1967 में जेलयात्रा की तब उन्हें तिहाड़ जेल में बंद रखा गया । इसके बाद 1973 में अटल जी के साथ ही वे नैनी जेल में बंद रहे। झांसी में वे बीजेपी के दो बार जिला उपाध्यक्ष भी बने। जीवन के 80 वें दशक में भी गिरीश सक्सेना में ऊर्जा की कमी नहीं है और वे अब भी सामाजिक कार्यों में तत्पर रहते हैं। पृथक बुंदेलखंड राज्य को लेकर हमने उनसे खास बातचीत की।
झांसी। देश की आजादी के बाद से ही बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठती चली आ रही है। महाराष्ट्र, गुजरात , गोवा, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड यहां तक कि छत्तीसगढ़, झारखंड और तेलंगाना को पृथक राज्य बना दिया गया लेकिन बुंदेलखंड को लेकर सरकारें उदासीन बनी हुई हैं। ये बात कही वरिष्ठ पत्रकार गिरीश सक्सेना ने । उन्होंने कहाकि मैं ये नहीं चाहता कि आंदोलनकारी हिंसक आंदोलन करें क्योंकि इससे अपने ही देश के जानमाल की क्षति होगी लेकिन तेवर तो तीखे करने ही पड़ेंगे।
50 वर्षों तक बुंदेलखंड के विभिन्न हालातों पर रिपोर्टिंग कर चुके गिरीश सक्सेना कहते हैं कि उत्तर प्रदेश बड़ी आबादी वाला राज्य है। इसके अन्तर्गत आने वाले बुंदेलखंड के सातों जिले बदहाली के शिकार हैं। यही हाल मध्यप्रदेश के हिस्से में आने वाले जिलों का हैं। इस क्षेत्र का विकास तभी हो सकता है जबकि इसे अलग राज्य बनाया जाया। उन्होंने बताया कि देश की आजादी के बाद से लगातार बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाने की मांग उठती चली आ रही है। ताकि इस क्षेत्र का सर्वांगीण विकास हो सके लेकिन कई बड़े आंदालनों के बाद भी सरकारें नहीं चेती जबकि राजनीति करने वाले इस मुददे को भुनाकर सत्ता तक पहुंच जाते हैं।
गिरीश सक्सेना ने कहाकि बुंदेलखंड राज्य आंदोलन के बाद जिन क्षेत्रों से आवाजें उठीं वे अलग राज्य बना दिये गये लेकिन बुंदेलखंड के साथ सौतेला रवैया अपनाया गया। इसका बड़ा कारण ये है कि हमारे आंदोलन की गूंज सरकारों तक नहीं पहुंच रही । तेलंगाना ने आवाज उग्र की तो रातों रात राज्य बना दिया गया। उत्तराखंड ने आवाज बुलंद की तो उसे अलग राज्य बना दिया गया। अभी गोरखालेण्ड पृथक राज्य आंदोलन उग्र होने लगा है तो सरकार उसके बारे में सोचने लगी है।
उन्होंने कहाकि मैं आंदोलनकारियों से ये नहीं कहता कि आंदोलन को हिंसा का रूप दें क्योंकि इससे हमारे ही देश और लोगों का नुकसान होगा लेकिन आंदोलन के तेवर तो तीखे करने ही पड़ेंगे। अन्यथा 60-70 सालों में किसी ने नहीं सुनी तो आगे भी कोई नहीं सुनेगा।
उन्होंने कहाकि बुंदेलखंड राज्य की प्रासंगिकता इसलिये है कि यहां बेरोजगारी चरम पर है, लोग पलायन कर रहे हैं जबकि बुंदेलखंड में संसाधनों की कोई कमी नहीं हैं। यहां के राजस्व से मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारें मौज करती हैं और यहां के लोगों को बदले में मिलती है उपेक्षा, बेरोजगारी और मुफलिसी। बडे़-बड़े विकास पैकेज आते हैं लेकिन वे भी अधिकारियों और नेताओं के भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाते हैं।
उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में पर्यटन के अलावा क्या है ? छत्तीसगढ़ में कोयला के अलावा क्या है ? यहां की पहचान तो नक्सली थे लेकिन अलग राज्य बनने पर इनकी विकास रफ्तार देखिये! जबकि बुंदेलखंड खनिज सम्पदा और पर्यटन के मामले में काफी अमीर है। यहां होने वाली गन्ना, मटर, अदरक, मूंगफली और आंवले की पैदावार का कोई सानी नहीं है। देश की बड़ी नदियां यहां से गुजरती हैं। यहां की बालू और ग्रेनाईट का मुकाबला नहीं, बुंदेलखंड का प्रमुख केन्द्र झांसी सड़क और रेल मार्ग से पूरे देश को जोड़ता है। हवाई सेवा शुरू होने पर ये वायुमार्ग का भी मुख्य केन्द्र बन जायेगा। बावजूद इसके बुंदेलखंड पिछड़ा है क्योंकि यहां के राजस्व से नेता अपने क्षेत्रों को पोषित कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि कभी मध्यप्रदेश की सरकार बुंदेलखंड बनने में रोड़ा अटकाती है तो कभी उत्तर प्रदेश के नेताओं की राजनैतिक महत्वाकांक्षाऐं इसे नहीं बनने देती हैं लेकिन अब तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और केन्द्र में एक ही पार्टी की सरकार है। ऐसे में आपसी सामंजस्य से बुंदेलखंड को अलग राज्य बनाकर यहां के लोगों को देश की मुख्यधारा से जोड़ने का काम सरकारों को करना चाहिये ।