धर्मेन्द्र साहू
झांसी। बुंदेलखंड में कला और कलाकारों की यूं तो कोई कमी नहीं है लेकिन चित्रकला के क्षेत्र में विकास वैभव सिंह अलग स्थान रखते हैं । बुंदेलखंड की ऐतिहासिक इमारतों, लोककलाओं और संस्कृति को उन्होंने स्केच आर्ट के जरिये जीवंत किया है।
चित्रकला एवं स्थापत्य की दृष्टि से बुन्देलखण्ड का अतीत अत्यन्त समृद्धिशाली रहा है। बुन्देलखण्ड के देवगढ़, कालिंजर, खजुराहो, दतिया व ओरछा में स्थापत्य एवं भित्तिचित्रों को देखने के लिये पर्यटकों की भीड़ लगी रहती है। परन्तु ऐसे भी अनेक स्थल हैं जो उत्साही अन्वेषकों और पर्यटकों की प्रतीक्षा में अपने पुरातात्विक व कलात्मक वैभव को अपने में समाये हुये हैं। उन स्थलों के लिये विकास वैभव वैभव सिंह लगातार प्रयासरत हैं । अपने चित्रों के माध्यम से वे इन स्थलों को राष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शित कर चुके हैं।
मूलरूप से जालौन जिले के जखौली निवासी विकास वैभव सिंह पेशे से अध्यापक हैं और राजकीय इंटर कॉलेज झांसी में आर्ट टीचर के रूप में पदस्थ हैं लेकिन ये सामाजिक, लोककला और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हमेशा आगे रहते हैं। जीवाजी यूनीवर्सिटी ग्वालियर से चित्रकला में एम.ए. विकास वैभव सिंह कला और कलाकारों को प्रोत्साहित करने वाली संस्था पुलिंद कला दीर्घा में सचिव के रूप में दायित्व संभाल रहे हैं। विकास द्वारा बनाये गये चित्रों की देश के अलग-अलग स्थानों पर अब तक 10 एकल प्रदर्शनियां लग चुकी हैं। इसके साथ ही 37 सामूहिक चित्र प्रदर्शनियों में उनके चित्र शामिल किये गये । जिन्हें दर्शकों ने काफी सराहा है। उन्होंने झांसी मंडल के आयुक्त की संस्तुति पर ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक इमारतों के 70 से अधिक चित्रों का रेखांकन कर अपने आप में एक रिकॉर्ड बनाया है।
बुंदेलखंड में पर्यटन की दृष्टि से अनेक स्थान हैं । सैलानी उन ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण करते हैं परन्तु उसी विरासत को सुन्दर स्कैच व रंगीन चित्रों के रूप में जीवंत देखना अलग ही एहसास होता है। इस एहसास को अपनी चित्रकारी के माध्यम से विकास वैभव सिंह ने दर्शाया है । झॉंसी समेत बुन्देलखण्ड के महत्वपूर्ण स्थलों को उन्होंने अपने चित्रों के जरिये उनकी खूबसूरती एक अलग ही तरीके से प्रस्तुत की है। वॉटर कलर व जेल पेन के संयोजन से बने ये चित्र कला प्रेमियों को न केवल आकर्षित करते हैं बल्कि इतिहास को संरक्षित करने की प्रेरणा भी देते हैं।
विकास वैभव सिंह ने वॉटर कलर व जेल पेन के माध्यम से बुन्देलखण्ड के ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्मारकों का अत्यंत सजीव चित्रण किया है। रंगो के बिना सिर्फ रेखाओं से बनी ये आकृतियां समूचे इतिहास को हमारे सामने सजीव सा कर देती हैं। इन ऐतिहासिक स्थलो की एक-एक बारीकी को उनके चित्रों में सहजता से देखा जा सकता है।
इन्होंने बुंदेली शैली पर अध्ययन कर दुर्लभ प्राचीन बुंदेली लघु चित्रों की अनुकृतियां तैयार की है। बुंदेली विधा पर आधारित इनके चित्र रानी झांसी के समकालीन चित्रकार सुखलाल की याद दिला देते है। चित्रण विषय, रंग योजना, चित्र की पूर्णता का ढंग एवं कोमल रेखाओं की विशेषता आदि से परिपूर्ण ये चित्र 19वीं सदी की कला शैली के है।
विकास वैभव सिंह सिंह ने झांसी दुर्ग, रानीमहल, गढ़कुण्डार दुर्ग, बरूआसागर दुर्ग, गुसाईंयों के मंदिर, जराय का मठ, समथर का किला, सेंट ज्यूड श्राइन चर्च, जालौन के कोंच में स्थित बाराखम्भा, बसरिया का शिव मंदिर , व्यास मंदिर आदि कई ऐतिहासिक स्थानों के चित्रों को उकेरा है। झांसी महोत्सव के कला पर्व के संयोजक के रूप में विकास ने बुंदेलखंड की लोककलाओं और कलाकारों को प्रोत्साहित करने का अनूठा कार्य किया है। उन्होंने रानकदे, विमल सागर (चित्रकथा), गढ़कुण्डार में खंगार राजवंश, विरासत पथ-झांसी एवं कला हस्ताक्षर आदि पुस्तकें लिखीं हैं। विकास को दर्जनों पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।